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दिल्ली हिंसा में पुलिस ने अभी तक 531 एफआईआर दर्ज की हैं। 48 मामले ऐसे हैं, जिनमें उपद्रवियों ने किसी बंदूक या पिस्तौल से गोली चलाकर लोगों को मारा है। इनमें से केवल अंकित शर्मा का एक ऐसा केस है, जिसमें दर्ज एफआईआर में आरोपी का नाम लिखा है। अंकित के परिजनों ने एफआईआर में ताहिर हुसैन पर हत्या का आरोप लगाया गया है।
बाकी के सभी मामलों में आरोपियों के बारे में कुछ नहीं पता है। ऐसी 47 एफआईआर हैं, जिनमें किसी आरोपी का नाम नहीं है। केवल इतना लिखा है कि इस व्यक्ति की मौत गोली लगने से हुई है।
मामले की जांच के लिए गठित क्राइम ब्रांच की एसआईटी ने उक्त एफआईआर को लेकर अभी तक पांच सौ से अधिक लोगों से पूछताछ की है, लेकिन लोग फिल्मी अंदाज में जवाब देकर निकल जाते हैं। कोई बोलता है कि भीड़ में से किसी ने गोली चलाई थी, दूसरा कहता है कि किसी ऊंची जगह से गोली मारी गई है।
तीसरा आदमी कहता है कि गोली चलाने वाले हेलमेट पहने थे, तो कोई बोलता है कि हम भीड़ में गोली चलाने वाले का चेहरा नहीं देख पाए।
तीसरा आदमी कहता है कि गोली चलाने वाले हेलमेट पहने थे, तो कोई बोलता है कि हम भीड़ में गोली चलाने वाले का चेहरा नहीं देख पाए।
क्राइम ब्रांच के सूत्रों के अनुसार, ऐसे मामलों की पूरी संजीदगी से जांच की जा रही है। यहां दिक्कत केवल एक ही है कि कोई भी व्यक्ति सामने आकर यह नहीं बता रहा, हां उसने फलां व्यक्ति को गोली चलाते हुए देखा है। 47 केसों की जांच के लिए एसआईटी अभी तक सौ से अधिक लोगों को पूछताछ के लिए बुला चुकी है।
सीनियर इंस्पेक्टर ऐसे लोगों से पूछताछ करता है। उन्हें कई जगहों के वीडियो भी दिखाए जाते हैं। उनके सामने आरोपियों के फोटो भी रखे जाते हैं, ताकि वे किसी का चेहरा देखकर कुछ सुराग दे सकें। पिछले चार दिनों में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला, जिसने कोई ठोस जानकारी दी हो।
जिन लोगों से पूछताछ हो रही है कि वे कहते हैं, जी हां साहब, हमने गोली की आवाज सुनी थी। जिस तरफ हम खड़े थे, उसके दूसरी ओर से गोली आई थी। गोली चलने के बाद लोगों का गुस्सा बढ़ गया। वे और ज्यादा उपद्रव मचाने लगे।
ऐसे लोग हिंसा से जुड़ी अनेक बातें साझा करते हैं, मगर जब यह सवाल आता है कि गोली किसने चलाई तो वे चुप हो जाते हैं या उसका फिल्मी अंदाज में जवाब देने लगते हैं।
अरे साहब उपद्रवियों की बहुत भीड़ थी। किसने गोली चलाई, मालूम नहीं। ये भी हो सकता है कि छत से किसी ने भीड़ पर गोली चलाई हो। जब इनसे छत के बारे में पूछा जाता है कि वह किसका मकान है, तो वे जवाब देते हैं कि पास का ही कोई मकान था, लेकिन इसका सही जवाब नहीं मिल पाता।
सीनियर इंस्पेक्टर ऐसे लोगों से पूछताछ करता है। उन्हें कई जगहों के वीडियो भी दिखाए जाते हैं। उनके सामने आरोपियों के फोटो भी रखे जाते हैं, ताकि वे किसी का चेहरा देखकर कुछ सुराग दे सकें। पिछले चार दिनों में एक भी व्यक्ति ऐसा नहीं मिला, जिसने कोई ठोस जानकारी दी हो।
जिन लोगों से पूछताछ हो रही है कि वे कहते हैं, जी हां साहब, हमने गोली की आवाज सुनी थी। जिस तरफ हम खड़े थे, उसके दूसरी ओर से गोली आई थी। गोली चलने के बाद लोगों का गुस्सा बढ़ गया। वे और ज्यादा उपद्रव मचाने लगे।
ऐसे लोग हिंसा से जुड़ी अनेक बातें साझा करते हैं, मगर जब यह सवाल आता है कि गोली किसने चलाई तो वे चुप हो जाते हैं या उसका फिल्मी अंदाज में जवाब देने लगते हैं।
अरे साहब उपद्रवियों की बहुत भीड़ थी। किसने गोली चलाई, मालूम नहीं। ये भी हो सकता है कि छत से किसी ने भीड़ पर गोली चलाई हो। जब इनसे छत के बारे में पूछा जाता है कि वह किसका मकान है, तो वे जवाब देते हैं कि पास का ही कोई मकान था, लेकिन इसका सही जवाब नहीं मिल पाता।